शहर बदला, अधिकारी बदले, लेकिन हाईटेक सिटी का संगठित पराठा गैंग नहीं बदला। साल दर साल पराठा गैंग का विस्तार होता गया और सेक्टरों में अतिक्रमण व गंदगी की समस्याएं बढ़ती गईं। शहर के किसी भी सेक्टर में घुस जाएं तो यह समस्या दिखेगी। खासकर औद्योगिक सेक्टरों में तो अवैध रूप से लगीं पराठे की दुकानें प्राधिकरण व पुलिस की मिलीभगत से चलती हैं।
पराठा गैंग का नेटवर्क इतना मजबूत है कि सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, इनकी दुकानें चलती रहेंगी। किसी एंट्री प्वाइंट से नोएडा में दाखिल हो जाएं, वहीं से पराठे की दुकानें दिख जाएंगी। कहीं रेहड़ी पटरी की शक्ल में तो कहीं अवैध निर्माण के रूप में। औद्योगिक सेक्टरों में पराठे की दुकानें लगवाने के लिए स्थानीय दबंगों से लेकर पुलिस व प्राधिकरण के अधिकारी-कर्मचारी को खुश करना होता है। शहर में जितनी भी रेहड़ियां चलती हैं। उनमें कुछ को छोड़ दें तो प्राइम लोकेशन पर लगने वाली दुकानें पराठा गैंग की होती हैं।
दरअसल, पराठा गैंग का कोई एक व्यक्ति नेतृत्व नहीं करता है। इस गैंग के अलग-अलग हिस्से में अलग-अलग लोग काम करते हैं। जिनका काम संरक्षण देकर पुलिस व प्राधिकरण को भी साधे रखना होता है जो पराठा गैंग को संरक्षण देने वाले लोग हैं उनके ऊपर सफेदपोश आका होते हैं। इसके पीछे पराठा कारोबार में करोड़ों की कमाई छिपी होती है। शहर में हर दिन का लाखों रुपये की कमाई इस अवैध रूप से चल रही पराठों की दुकानों से होती हैं।
औद्योगिक सेक्टरों में सबसे ज्यादा अतिक्रमण
शहर के औद्योगिक सेक्टरों में आईटी कंपनियां व फैक्ट्रियां हैं। यहां खाने पीने की दुकानें नहीं हैं। अधिकतर कंपनियों में कैंटीन की भी व्यवस्था नहीं है। इस कारण औद्योगिक सेक्टरों के अंदर पराठे की दुकान लगाने की परंपरा की शुरुआत हुई। सुबह से लेकर रात तक अलग-अलग किस्म के पराठे बिकने लगे। धीरे-धीरे बड़ी-बड़ी कंपनियों के पास पराठे की दुकान अतिक्रमण कर बनाई जाने लगी। देखते ही देखते इसने एक कारोबार का रूप धारण कर लिया। जब इस धंधे में काफी फायदा होने लगा तो सफेदपोश इस धंधे में घुसने लगे। औद्योगिक सेक्टरों में रोजाना लाखों की कमाई होती है।
नाम पराठे का, मिलता है सब कुछ
औद्योगिक सेक्टरों में पराठे की दुकानों की आड़ में सब कुछ बेचा जा रहा है। पहले पराठे की दुकान खोलते हैं बाद में चावल दाल, रोटी से लेकर फास्ट फूड बेचने लगते हैं। इसके बाद शराब से लेकर अन्य प्रतिबंधित सामानों की भी बिक्री होती है। यह सब स्थानीय पुलिस की जानकारी में रहता है। पुलिस चौकी में तैनात बीट कांस्टेबल व चौकी इंचार्ज को सब पता होता है।
इन स्थानों पर सबसे अधिक मारामारी
शहर में आवासीय सेक्टरों को छोड़ दें तो पराठा गैंग की मारामारी सब जगह है। गोलचक्कर से शुरू हो जाइए तो सेक्टर-1, 2, 3, 4, 5, 6, 8, 10, 11,12, 15, 16, 18, 19, 22, 27, 29, 37 तक इनका कब्जा दिख जाएगा। इससे आगे बढ़ेंगे तो सेक्टर-57, 58, 59, 60, 62, 63, 64, 65, 66, 67,70, 71 के इलाके में पराठा गैंग का दबदबा दिख जाएगा।
एक्सप्रेस वे और मेट्रो स्टेशन नया केंद्र बना
कुछ सालों में एक्सप्रेसवे के किनारे सैकड़ों की संख्या में कंपनियों ने अपना विस्तार किया है। इसके बाद इस इलाके में पराठे की दुकानों की बाढ़ आ गई है। दरअसल, एक्सप्रेसवे पास दूर-दूर तक कोई मार्केट न होने के कारण पराठा गैंग ने यहां अपना ध्यान केंद्रित कर लिया। यहां इस गैंग को सफलता भी मिल रही है। वहीं मेट्रो स्टेशन के आसपास भी इस गिरोह का कब्जा हुआ है। यहां भी कई ऐसी दुकानें चल रही हैं।
इससे ये समस्या बढ़ी
1. अतिक्रमण: शहर के मुख्य व आंतरिक मार्गों पर ठेले बेतरतीब तरीके से लगाए जाते हैं। इससे अतिक्रमण की समस्या बढ़ती जा रही है। लोगों को पैदल
चलने में भी परेशानी होती है।
2. ट्रैफिक: शहर में ट्रैफिक धीमा होने व जाम लगने का एक प्रमुख कारण ठेलों का अतिक्रमण है। हर जगह इनके अतिक्रमण के कारण लोगों को घंटों जाम
झेलना पड़ता है।
3. सुरक्षा: पराठे बेचने के नाम पर आईटी कंपनियों के पास रातभर दुकानें खुलती हैं। यहां बदमाश, नशेड़ी रुकते हैं और आपराधिक घटनाओं को अंजाम देते
हैं।
4. गंदगी: स्वच्छता पर भी खासा असर पड़ रहा है। चाहे जितनी भी सफाई का दावा किया जाए, लेकिन ठेलियों के कारण गंदगी हो रही है।